पेराई सत्र शुरू होने के बावजूद चीनी मिलों के चालू न होने और गन्ना मूल्य घोषित करने में देरी से उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों में गुस्सा सुलग रहा है। महाराष्ट्र में गन्ना मूल्य निर्धारण में राज्य सरकार की भागीदारी की मांग को लेकर वहां के गन्ना किसान हिंसक आंदोलन पर उतर आए हैं। इसका सीधा असर उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों पर भी पड़ा है।
उत्तर प्रदेश में गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) अभी तक घोषित नहीं हो पाया है। उधर, पेराई सत्र शुरू हुए डेढ़ महीने से अधिक हो चुका है, लेकिन राज्य में इक्का-दुक्का चीनी मिलों में ही पेराई चालू हो पाई है। छोटे किसान गेहूं की बुवाई के लिए खेत खाली न हो पाने से हलकान हैं। वे गुड़ बनाने वाले कोल्हुओं को औने-पौने दाम पर गन्ना बेचने को मजबूर हैं। इसके चलते राज्य के किसानों का गुस्सा लगातार बढ़ रहा है। पिछले साल राज्य में गन्ने का एसएपी 240/250 रुपये प्रति क्विंटल घोषित था। इस बाबत राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में होने वाली बैठक दो सप्ताह पहले ही हो चुकी है। उस बैठक में किसान संगठनों ने एसएपी किसी भी हाल में 300 रुपये प्रति क्ंिवटल से कम न होने की बात कही थी। इसके समर्थन में उन्होंने उन सरकारी संस्थानों की रिपोर्ट का हवाला दिया था, जिसमें गन्ना खेती की लागत 228/232 रुपये प्रति क्ंिवटल बताई गई है। इसके हिसाब से लागत में पिछले साल के मुकाबले 22 फीसदी की वृद्धि हुई है। यानी पिछले साल के एसएपी में भी इसी दर पर वृद्धि होनी चाहिए। नेशनल एलायंस ऑफ फारमर्स एसोसिएशन (नाफा) ने सरकार को चेतावनी दी है कि ऐसा न होने पर किसान संगठन आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।
किसान जागृति मंच के संयोजक सुधीर पंवार ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें जानबूझकर पेराई शुरु नहीं कर रही हैं। चीनी की रिकवरी दर कम होने की वजह से मिलें पेराई करने से बच रही हैं। प्रति माह 0.25 फीसदी की रिकवरी बढ़ जाती है। इसी वजह से वे पेराई शुरू करने में विलंब कर रहे हैं। इस साल गन्ना किसानों की दीवाली काली हो गई है।