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News


चीनी उद्योग को डिकंट्रोल करने पर सरकार गंभीर
Date: 25 Oct 2012
Source: Business Bhaskar
Reporter: Business Bhaskar Bureau
News ID: 1695
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साक्षात्कार : प्रो. के. वी. थॉमस
[+] ओजीएल के तहत चीनी निर्यात रहेगा जारी 
[+] गेहूं और चावल निर्यात की अच्छी संभावनाएं 
[+] चावल के भंडारण में कोई परेशानी नहीं 
[+] ग्वार वायदा कारोबार दोबारा शुरू करने पर फैसला सभी की राय के बाद 
[+] मुद्रास्फीति दर काफी हद तक सामान्य के करीब

चीनी उद्योग को विनियंत्रित करने पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी. रंगराजन की अध्यक्षता में गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। सरकार इस पर पूरी गंभीरता से विचार कर रही है। प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक के समर्थक खाद्य एवं उपभोक्ता मामले राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के. वी. थॉमस के मुताबिक इस विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में लाने की सरकार की पूरी तैयारी है। उम्मीद है कि वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को भी पूर्ण स्वायत्तता देने वाले फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेग्युलेशन एक्ट (एफसीआरए) को संसद में मंजूरी मिल जाएगी, जिससे जिंस बाजार में कारोबार करने वाले छोटे निवेशकों के साथ-साथ किसानों को भी फायदा होगा।


व्हाइट चीनी के आयात पर आयात शुल्क को 10 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करने का प्रस्ताव है। साथ ही, रॉ-शुगर के आयात को शुल्क मुक्त करने का भी प्रस्ताव है। खाद्यान्न के निर्यात के लिए एक पारदर्शी नीति बनाने पर विचार चल रहा है। खाद्यान्न के भंडारण और खरीफ विपणन सीजन में चावल की सरकारी खरीद से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर प्रो. के. वी. थॉमस से बिजनेस भास्कर के शशि झा और आर. एस. राणा ने विस्तृत बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:


शुगर विनियंत्रण पर सी. रंगराजन कमेटी अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री को सौंप चुकी है। इस पर खाद्य मंत्रालय की अपनी क्या राय है? खासकर यह देखते हुए कि इससे पहले भी इस पर पहले भी दो कमेटी अपनी रिपोर्ट सौंप चुकी हैं लेकिन दोनों रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी गई? 
इस बार ऐसा नहीं होगा। सरकार सी. रंगराजन की रिपोर्ट को लेकर पूरी तरह से गंभीर है। रिपोर्ट फिलहाल प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के पास है। यह कमेटी प्रधानमंत्री ने गठित की थी। हमें अभी अधिकारिक रूप से रिपोर्ट नहीं मिली है। या तो प्रधानमंत्री कार्यालय विश्लेषण के बाद हमें रिपोर्ट भेजे अथवा प्रधानमंत्री कार्यालय रिपोर्ट भेजकर हमारी राय मांगे तो खाद्य मंत्रालय इस पर कुछ कह सकता है। जिस समय इस कमेटी का गठन किया गया था तो खाद्य मंत्रालय ने कहा था कि इस कमेटी की सिफारिशों के प्रति सरकार गंभीर है। चीनी उद्योग के विनियंत्रण से कंपनियों के साथ ही किसानों और उपभोक्ताओं को भी फायदा होगा।


चीनी आयात पर सरकार की आयात शुल्क लगाने की कोई योजना है? इसके अलावा पीडीएस में चीनी के दाम बढ़ाने और पीडीएस में चीनी की मात्रा कम करने की भी कोई योजना है? 
व्हाइट चीनी के आयात पर आयात शुल्क को 10 से बढ़ाकर 20 फीसदी करने का प्रस्ताव है। इसके अलावा रॉ-शुगर के आयात को भी शुल्क मुक्त करने का सरकार का प्रस्ताव है। वर्तमान में व्हाइट और रॉ-शुगर आयात पर 10 फीसदी का आयात शुल्क है। पीडीएस में चीनी के दाम बढ़ाने और लेवी चीनी की मात्रा जो फिलहाल 10 फीसदी है, को घटाने की अभी कोई योजना नहीं है।


चालू पेराई सीजन 2012-13 (अक्टूबर से सितंबर) में देश में चीनी का उत्पादन करीब 25 लाख टन कम होने की आशंका है। ऐसे में ओपन जरनल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत क्या चीनी निर्यात जारी रखा जाएगा? 
चालू पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन 230 से 235 लाख टन ही होने का अनुमान है जो पिछले साल के 262 लाख टन से कम है। लेकिन अक्टूबर के शुरू में देश में चीनी का बकाया स्टॉक करीब 60 लाख टन का बचा हुआ है। देश में चीनी की सालाना खपत करीब 220 लाख टन की होती है। ऐसे में देश चीनी की कुल उपलब्धता मांग के मुकाबले ज्यादा है इसीलिए ओजीएल में चीनी का निर्यात जारी रहेगा।


क्या सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में फूड सिक्योरिटी विधेयक पेश करने की योजना बना रही है? क्या पुराने विधेयक में कोई बदलाव भी करने की भी योजना है? 
खाद्य सुरक्षा बिल इस समय संसद की स्थाई समिति के पास है तथा उम्मीद है कि संसदीय समिति शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप देगी। ऐसे में सरकार की पूरी कोशिश है कि इसे संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान पेश किया जाए। जहां तक बदलाव का सवाल है तो फिलहाल इसके बारे में अभी ठोस रूप से कुछ कहना मुश्किल है।


हाल ही में फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट रेगुलेशन एक्ट (एफसीआरए) को कैबिनेट ने अपनी मंजूरी दी है। आपके हिसाब से इस विधेयक से देश के किसानों और छोटे निवेशकों को किस प्रकार मदद मिलेगी? और क्या इसे संसद में पारित करा लिया जाएगा? 
एफसीआरए विधेयक से वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) को सेबी की तरह अधिकार मिल जाएंगे। इससे ब्रोकरों पर जुर्माने की राशि बढ़ जाएगी, जिससे ब्रोकर मनमानी नहीं कर पाएंगे। एफएमसी अपने कार्य के निष्पादन में ज्यादा स्वतंत्र हो जाएगी जिससे एक्सचेंजों में काम करने वाले छोटे निवेशकों तक इसका लाभ पहुंचेगा। साथ ही, किसानों को भी इसका फायदा होगा। 


ईरान को गेहूं निर्यात पर अभी तक कोई फैसला नहीं हो पाया है? सरकार खाद्यान्न निर्यात के लिए क्या कोई योजना बना रही है? 
गेहूं निर्यात पर बात करने के लिए ईरान की एक टीम भारत आई थी, जिसे करनाल बंट को लेकर कुछ आपत्तियां थीं। लेकिन ईरान से आई टीम ने भारतीय गेहूं की क्वालिटी को लेकर संतोष जताया है तथा सालाना करीब 10 लाख टन गेहूं निर्यात की बातचीत अंतिम चरण में है।


ईरान के अलावा, मलेशिया और अधिकांश आसियान देशों में भारतीय खाद्यान्न खासकर गेहूं और चावल निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं। सितंबर 2011 से अभी तक देश से करीब 61 लाख टन गैर-बासमती चावल और 25 लाख टन गेहूं का निर्यात प्राइवेट निर्यातकों द्वारा किया जा चुका है। खाद्यान्न उत्पादों के निर्यात के लिए लंबी अवधि की नीति बनाने पर सरकार गंभीर है। उम्मीद है अगले साल गेहूं और चावल के निर्यात में और बढ़ोतरी होगी।


केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर स्टॉक मौजूद है इसके बावजूद, गेहूं उत्पादों खासकर आटा की कीमतों में तेजी आई है? 
गेहूं उत्पादों की कीमतों में आई तेजी के पीछे कई कारण है। गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में पिछले दो-तीन सालों में भारी बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, गेहूं की खरीद में मंडी टैक्स और अन्य कई खर्चे जुड़ जाते हैं जिसकी वजह से गेहूं के दाम बढ़े हैं। गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार की ओएमएसएस में 70 लाख टन अतिरिक्त गेहूं का आवंटन नवंबर 2012 से मार्च 2013 तक करने की योजना है।


खाद्य पदार्थों की कीमतों में आई तेजी के बारे में क्या कहना है? 
खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी आने की भी कई वजह हैं। चालू खरीफ में देश में दलहन और खाद्य तेलों की पैदावार में कमी आने की आशंका है इसीलिए सरकार ने बीपीएल परिवारों को 20 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी के आधार पर दालों का वितरण करने की योजना बनाई है। इसके अलावा, खाद्य तेलों पर भी बीपीएल परिवारों को 15 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी देने की योजना है। जहां तक मुद्रास्फीति का सवाल है तो काफी हद तक यह सामान्य के करीब है। मनरेगा और दूसरी कई सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के कारण किसानों और आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की आय में बढ़ोतरी हुई है जिससे उनकी क्रय शक्ति बढ़ी है।


ग्वार के वायदा कारोबार को दोबारा शुरू करने की क्या सरकार की कोई योजना है? 
ग्वार वायदा कारोबार को दोबारा शुरू करने के लिए सभी पक्षों की राय ली जाएगी। वायदा कारोबार पर सरकार ने एक एडवायजरी कमेटी का गठन किया है जिसमें एक्सचेंज से जुड़े लोगों के अलावा, ट्रेडर्स, हैजर्स, किसान और पत्रकारों को सदस्य बनाया गया है।


चालू खरीफ में चावल की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है तथा केंद्रीय पूल में पहली अक्टूबर को 665 लाख टन खाद्यान्न का स्टॉक मौजूद है जबकि कुल भंडारण क्षमता (केंद्र और राज्यों) को मिलाकर 714 लाख टन की है। ऐसे भंडारण की समस्या से सरकार कैसे निपटेगी? 
धान की खरीद कर सरकारी एजेंसियां उसे सीधे राइस मिलों में भेजती है और मिलिंग के बाद ही चावल आता है। जबकि केंद्रीय पूल से हर महीने 50 से 60 लाख टन खाद्यान्न का उठाव हो रहा है इसलिए चावल के भंडारण में कोई परेशानी नहीं आएगी।

 
  

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