अमर उजाला ब्यूरो
लखनऊ। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव गन्ना व चीनी उद्योग को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसा करने से चीनी मिलें मनमानी कर सकती हैं। इससे किसानों का शोषण होगा। मुख्यमंत्री ने यह बातें शनिवार को अपने सरकारी आवास पर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष डॉ सी रंगराजन के साथ बैठक में कहीं। बैठक में गन्ना व चीनी क्षेत्र को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के मुद्दे पर चर्चा हुई।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गन्ना व चीनी मिलों को नियंत्रण से मुक्त करने पर मिलें किसी भी क्रय केंद्रों से गन्ना खरीद सकेंगी। ऐसे में आशंका है कि कुछ गांवों में चीनी मिलों के कई केंद्र खुल जाएं और कुछ में एक भी नहीं। इससे छोटे व साधारण किसानों के शोषण की पूरी आशंका है। रसूखदार मनमानी दर पर छोटे किसानों से गन्ना खरीद कर ऊंची दरों पर मिलों को आपूर्ति कर मुनाफा कमाएंगे।
सीएम ने बताया, चीनी मिल स्थापना को लाइसेंस मुक्त कर दिया गया है। इसके बावजूद दो मिलों के बीच की न्यूनतम दूरी 15 किलोमीटर तय की गई है। मिलों पर यह प्रतिबंध होता है कि वह पेराई समाप्त करने के पहले संबंधित क्षेत्र के गन्ना समिति, जिला गन्ना अधिकारी व क्षेत्रीय गन्ना आयुक्तों से नो-केन प्रमाण पत्र लें। लेकिन नियंत्रण मुक्त होने से मिलें स्वतंत्र हो जाएंगी। इससे गन्ना समितियों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। जबकि समितियां किसानों को खाद, गन्ना बीज, कीटनाशक व कृषि यंत्र आदि के ऋण देकर उसका समायोजन गन्ना मूल्य भुगतान से किया जाता है। उन्होंने कहा कि किसान हित और कानून व्यवस्था के लिहाज से डी-रेगुलराइजेशन उचित नहीं है।
बैठक में आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य नंद कुमार, कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के अध्यक्ष अशोक गुलाटी, सचिव खाद्य एवं रसद विभाग सुधीर कुमार, प्रदेश के प्रोटोकॉल राज्यमंत्री अभिषेक मिश्र, राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष एनसी बाजपेयी, मुख्य सचिव जावेद उस्मानी, प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री राकेश गर्ग, प्रमुख सचिव गन्ना एवं चीनी उद्योग राहुल भटनागर, गन्ना आयुक्त कामरान रिजवी व विशेष सचिव मुख्यमंत्री जुहैर बिन सगीर मौजूद थे।
लेवी व्यवस्था में केंद्र मिलों से बाजार मूल्य पर चीनी खरीदे
एथनॉल के रेट में बढ़ोतरी की जाए
किसान व चीनी मिल संचालक भी पक्ष में नहीं