नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। घरेलू खपत से अधिक उत्पादन और गन्ने का बुवाई रकबा बढ़ने के मद्देनजर केंद्र सरकार ने मिलों के दबाव में चीनी निर्यात की खुली छूट तो दे दी है, लेकिन अब यही फैसला उसके लिए मुश्किलों का सबब बन गया है। सूखे की वजह से घरेलू बाजार में चीनी की खुदरा कीमतें सातवें आसमान की ओर हैं। ऐसे में महंगाई थामने के लिए सरकार निर्यात का अपना फैसला वापस कर सकती है। चीनी निर्यात की खुली छूट का निर्णय तीन मई, 2012 को किया गया था।
बृहस्पतिवार को मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह [इजीओएम] की बैठक होने जा रही है। इसमें इस प्रस्ताव पर फैसला लिए जाने की संभावना है। सूखे की वजह से गन्ना उत्पादक महाराष्ट्र, आध्र प्रदेश व कर्नाटक में गन्ने की फसल को भारी नुकसान हुआ है। बारिश न होने से फसलों का विकास रुक गया है, वहीं चीनी की रिकवरी पर विपरीत असर पड़ने की आशका है। सूखाग्रस्त ज्यादातर राज्यों में चारे का अभूतपूर्व संकट है। इससे खेतों में खड़ी गन्ने की फसल को पशुचारे में उपयोग किया जाने लगा है। इसका सीधा असर आगामी गन्ना वर्ष में चीनी के उत्पादन पर पड़ना तय है। चीनी कारोबारियों ने उत्पादन के ताजा अनुमान को देखते हुए दिल्ली में चीनी के खुदरा दाम पिछले एक महीने के भीतर 40 रुपये प्रति किलो से अधिक हो गए हैं। चीनी मूल्यों में और तेजी के भी आसार बने हुए हैं। ईजीओएम की पिछली बैठक में खाद्य मंत्री केवी थॉमस के हिस्सा न लेने की वजह से खाद्य वस्तुओं में आई महंगाई पर रोक लगाने संबंधी उपायों पर विचार नहीं किया गया था। सूत्रों के अनुसार आगामी बैठक में खाद्य मंत्रालय की ओर से मसौदे पेश किए जाएंगे। इनमें चीनी के निर्यात पर रोक लगाने पर भी विचार किया जा सकता है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन [इस्मा] के मुताबिक चालू चीनी वर्ष में गन्ना बुवाई का रकबा 52 लाख हेक्टेयर है। यह पिछले वर्ष के मुकाबले दो लाख हेक्टेयर अधिक है। हैरानी इस बात की है कि गन्ने की खेती बढ़ने के बावजूद चीनी के उत्पादन में 10 लाख टन तक की भारी कमी की आशका है। चालू चीनी वर्ष [अक्टूबर से सितंबर] में 2.60 करोड़ टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है, जबकि आगामी सीजन में यह आकड़ा 2.50 करोड़ टन रहने के आसार हैं।